कौन समझेगा इस ज़माने में,
दर्द कितना है मुस्कुराने में |
वो ही तूफ़ान आ गया फिर से,
और हम लगे हैं दिए जलाने में |
ज़िन्दगी एक क़र्ज़ है जिसको,
उम्र कम पड़ जाये चुकाने में |
घर से निकले थे जो इबादत के लिए ,
वो ही अब बैठे हैं शराब खाने में |
हंसते-हंसते राज़ के दिन बीते ,
रात बीती गज़ल सुनाने में |
राज़
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