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Monday, August 13, 2012

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
- राम प्रसाद बिस्मिल
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।

रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।
यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।
 वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।

खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

ऐ शहीदे-मुल्के-मिल्लत हम तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है !
अब न अगले बल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,

सिर्फ मिट जाने की हसरत अब दिले-'बिस्मिल' में है !

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
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रहबर - Guide
लज्जत - tasteful
नवर्दी - Battle
मौकतल - Place Where Executions Take Place, Place of Killing
मिल्लत - Nation, faith
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Many people have asked about the lyrics used in the movie 'Rang De Basanti'. Here it goes -- though remember these lines are not part of the original poem written by 'Ram Prasad Bismil'.

है लिये हथियार दुश्मन ताक मे बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिनमें हो जुनून कटते नही तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भडकेगा जो शोला सा हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न
जान हथेली में लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल मैं है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
दिल मे तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब
होश दुश्मन के उडा देंगे हमे रोको न आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल मे है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

Wednesday, August 1, 2012

भारत में समाचार पत्रों का संक्षिप्त इतिहास


भारत में समाचार पत्रों का इतिहासः- यूरोपीय लोगों के भारत में प्रवेश के साथ ही प्रारम्भ होता है। सर्वप्रथम भारत में प्रिंटिग प्रेस लाने का श्रेयपुर्तग़ालियों को दिया जाता है। 1557 ई. में गोवा के कुछ पादरी लोगों ने भारत की पहली पुस्तक छापी। 1684 ई. में अंग्रेज़ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भी भारत की पहली पुस्तक की छपाई की थी। 1684 ई. में ही कम्पनी ने भारत में प्रथम प्रिंटिग प्रेस (मुद्रणालय) की स्थापना की।

प्रथम समाचार पत्र
भारत में पहला समाचार पत्र कम्पनी के एक असंतुष्ट सेवक 'विलियम वोल्ट्स' ने 1766 ई. में निकालने का प्रयास किया, लेकिन अपने इस कार्य में वह असफल रहा। इसके बाद भारत में प्रथम समाचार पत्र निकालने का श्रेय 'जेम्स ऑगस्टस हिक्की' को मिला। उसने 1780 ई. में 'बंगाल गजट' का प्रकाशन किया, किन्तु इसमें कम्पनी सरकार की आलोचना की गई थी, जिस कारण उसका प्रेस जब्त कर लिया गया।
अंग्रेज़ों द्वारा सम्पादित समाचार पत्र
समाचार पत्रस्थानवर्ष
टाइम्स ऑफ़ इंडियाबम्बई1861 ई.
स्टेट्समैनकलकत्ता1878 ई.
इंग्लिश मैनकलकत्ता-
फ़्रेण्ड ऑफ़ इंडियाकलकत्ता-
मद्रास मेलमद्रास1868 ई.
पायनियरइलाहाबाद1876 ई.
सिविल एण्ड मिलिटरी गजटलाहौर-
इस दौरान कुछ अन्य अंग्रेज़ी अख़बारों का प्रकाशन भी हुआ, जैसे- बंगाल में 'कलकत्ता कैरियर', 'एशियाटिक मिरर', 'ओरियंटल स्टार'; मद्रास में 'मद्रास कैरियर', 'मद्रास गजट'; बम्बई में 'हेराल्ड', 'बांबे गजट' आदि। 1818 ई. में ब्रिटिश व्यापारी 'जेम्स सिल्क बर्किघम' ने 'कलकत्ता जनरल' का सम्पादन किया। बर्किघम ही वह पहला प्रकाशक था, जिसने प्रेस को जनता के प्रतिबिम्ब के स्वरूप में प्रस्तुत किया। प्रेस का आधुनिक रूप जेम्स सिल्क बर्किघम का ही दिया हुआ है। हिक्की तथा बर्किघम का पत्रकारिता के इतिहास में महत्पूर्ण स्थान है। इन दोनों ने तटस्थ पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन का उदाहरण प्रस्तुत कर पत्रकारों को पत्रकारिता की ओर आकर्षित किया।
प्रथम साप्ताहिक अख़बार
पहला भारतीय अंग्रेज़ी समाचार पत्र 1816 ई. में कलकत्ता में गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा 'बंगाल गजट' नाम से निकाला गया। यह साप्ताहिक समाचार पत्र था। 1818 ई. में मार्शमैन के नेतृत्व मेंबंगाली भाषा में 'दिग्दर्शन' मासिक पत्र प्रकाशित हुआ, लेकिन यह पत्र अल्पकालिक सिद्ध हुआ। इसी समय मार्शमैन के संपादन में एक और साप्ताहिक समाचार पत्र 'समाचार दर्पण' प्रकाशित किया गया। 1821 ई. में बंगाली भाषा में साप्ताहिक समाचार पत्र 'संवाद कौमुदी' का प्रकाशन हुआ। इस समाचार पत्र का प्रबन्ध राजा राममोहन राय के हाथों में था। राजा राममोहन राय ने सामाजिक तथा धार्मिक विचारों के विरोधस्वरूप 'समाचार चंद्रिका' का मार्च, 1822 ई. में प्रकाशन किया। इसके अतिरिक्त राय ने अप्रैल, 1822 में फ़ारसी भाषा में 'मिरातुल' अख़बार एवं अंग्रेज़ी भाषा में 'ब्राह्मनिकल मैगजीन' का प्रकाशन किया।

प्रतिबन्ध

समाचार पत्र पर लगने वाले प्रतिबंध के अंतर्गत 1799 ई. में लॉर्ड वेलेज़ली द्वारा पत्रों का 'पत्रेक्षण अधिनियम' और जॉन एडम्स द्वारा 1823 ई. में 'अनुज्ञप्ति नियम' लागू किये गये। एडम्स द्वारा समाचार पत्रों पर लगे प्रतिबन्ध के कारण राजा राममोहन राय का मिरातुल अख़बार बन्द हो गया। 1830 ई. में राजा राममोहन राय, द्वारकानाथ टैगोर एवं प्रसन्न कुमार टैगोर के प्रयासों से बंगाली भाषा में 'बंगदूत' का प्रकाशन आरम्भ हुआ। बम्बई से 1831 ई. मेंगुजराती भाषा में 'जामे जमशेद' तथा 1851 ई. में 'रास्त गोफ़्तार' एवं 'अख़बारे सौदागार' का प्रकाशन हुआ।
लॉर्ड विलियम बैंटिक प्रथम गवर्नर-जनरल था, जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया। कार्यवाहक गर्वनर-जनरल चार्ल्स मेटकॉफ़ने 1823 ई. के प्रतिबन्ध को हटाकर समाचार पत्रों को मुक्ति दिलवाई। यही कारण है कि उसे 'समाचार पत्रों का मुक्तिदाता' भी कहा जाता है। लॉर्ड मैकालेने भी प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया। 1857-1858 के विद्रोह के बाद भारत में समाचार पत्रों को भाषाई आधार के बजाय प्रजातीय आधार पर विभाजित किया गया। अंग्रेज़ी समाचार पत्रों एवं भारतीय समाचार पत्रों के दृष्टिकोण में अंतर होता था। जहाँ अंग्रेज़ी समाचार पत्रों को भारतीय समाचार पत्रों की अपेक्षा ढेर सारी सुविधाये उपलब्ध थीं, वही भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा था।
  • सभी समाचार पत्रों में 'इंग्लिश मैन' सर्वाधिक रूढ़िवादी एवं प्रतिक्रियावादी था। 'पायनियर' सरकार का पूर्ण समर्थक समाचार-पत्र था, जबकि 'स्टेट्समैन' कुछ तटस्थ दृष्टिकोण रखता था।
  • पंजीकरण अधीनियम
    • विभिन्न समाचार पत्र अधिनियम
      अधिनियमवर्षव्यक्ति
      समाचार पत्रों का पत्रेक्षण अधिनियम1799 ई.लॉर्ड वेलेज़ली
      अनुज्ञप्ति नियम1823 ई.जॉन एडम्स
      अनुज्ञप्ति अधिनियम1857 ई.लॉर्ड केनिंग
      पंजीकरण अधिनियम1867 ई.जॉन लॉरेंस
      देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम1878 ई.लॉर्ड लिटन
      समाचार पत्र अधिनियम1908 ई.लॉर्ड मिण्टो द्वितीय
      भारतीय समाचार पत्र अधिनियम1910 ई.लॉर्ड मिण्टो द्वितीय
      भारतीय समाचार पत्र (संकटकालीन शक्तियाँ) अधिनियम1931 ई.लॉर्ड इरविन
    स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव
    वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट
    समाचार पत्र अधिनियम
    अन्य अधिनियम
    1857 ई. में हुए विद्रोह के परिणामस्वरूप सरकार ने 1857 ई. का 'लाईसेंसिग एक्ट' लागू कर दिया। इस एक्ट के आधार पर बिना सरकारी लाइसेंस के छापाखाना स्थापित करने एवं उसके प्रयोग करने पर रोक लगा दी गई। यह रोक मात्र एक वर्ष तक लागू रही।
  • 1867 ई. के 'पंजीकरण अधिनियम' का उद्देश्य था, छापाखानों को नियमित करना। अब हर मुद्रित पुस्तक एवं समाचार पत्र के लिए यह आवश्यक कर दिया कि वे उस पर मुद्रक, प्रकाशक एवं मुद्रण स्थान का नाम लिखें। पुस्तक के छपने के बाद एक प्रति निःशुल्क स्थानीय सरकार को देनी होती थी। वहाबी विद्रोह से जुड़े लोगों द्वारा सरकार विरोधी लेख लिखने के कारण सरकार ने 'भारतीय दण्ड संहिता' की धारा 124 में 124-क जोड़ कर ऐसे लोगों के लिए आजीवन निर्वासन, अल्प निर्वासन व जुर्माने की व्यवस्था की।
    1857 ई. के संग्राम के बाद भारतीय समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई और अब वे अधिक मुखर होकर सरकार के आलोचक बन गये। इसी समय बड़े भयानक अकाल से लगभग 60 लाख लोग काल के ग्रास बन गये थे, वहीं दूसरी ओर जनवरी1877 मेंदिल्ली में हुए 'दिल्ली दरबार' पर अंग्रेज़ सरकार ने बहुत ज़्यादा फिजूलख़र्ची की। परिणामस्वरूप लॉर्ड लिटन की साम्राज्यवादी प्रवृति के ख़िलाफ़ भारतीय अख़बारों ने आग उगलना शुरू कर दिया। लिंटन ने 1878 ई. में 'देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम' द्वारा भारतीय समाचार पत्रों की स्वतन्त्रता नष्ट कर दी।
    'वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट' तत्कालीन लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण राष्ट्रवादी समाचार पत्र 'सोम प्रकाश' को लक्ष्य बनाकर लाया गया था। दूसरे शब्दों में यह अधिनियम मात्र 'सोम प्रकाश' पर लागू हो सका। लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए 'अमृत बाजार पत्रिका' (समाचार पत्र), जो बंगला भाषा की थी, अंग्रेज़ी साप्ताहिक में परिवर्तित हो गयी। सोम प्रकाश, भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर आदि के ख़िलाफ़ मुकदमें चलाये गये। इस अधिनियम के तहत समाचार पत्रों को न्यायलय में अपील का कोई अधिकार नहीं था। वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को 'मुंह बन्द करने वाला अधिनियम' भी कहा गया है। इस घृणित अधिनियम को लॉर्ड रिपन ने 1882 ई. में रद्द कर दिया।
    लॉर्ड कर्ज़न द्वारा 'बंगाल विभाजन' के कारण देश में उत्पन्न अशान्ति तथा 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' में चरमपंथियों के बढ़ते प्रभाव के कारण अख़बारों के द्वारा सरकार की आलोचना का अनुपात बढ़ने लगा। अतः सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए 1908 ई. का समाचार पत्र अधिनियम लागू किया। इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई कि जिस अख़बार के लेख में हिंसा व हत्या को प्रेरणा मिलेगी, उसके छापाखाने व सम्पत्ति को जब्त कर लिया जायेगा। अधिनियम में दी गई नई व्यवस्था के अन्तर्गत 15 दिन के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की सुविधा दी गई। इस अधिनियम द्वारा नौ समाचार पत्रों के विरुद्व मुकदमें चलाये गये एवं सात के मुद्रणालय को जब्त करने का आदेश दिया गया।
    1910 ई. के 'भारतीय समाचार पत्र अधिनियम' में यह व्यवस्था थी कि समाचार पत्र के प्रकाशक को कम से कम 500 रुपये और अधिक से अधिक 2000 रुपये पंजीकरण जमानत के रूप में स्थानीय सरकार को देना होगा, इसके बाद भी सरकार को पंजीकरण समाप्त करने एवं जमानत जब्त करने का अधिकार होगा तथा दोबारा पंजीकरण के लिए सरकार को 1000 रुपये से 10000 रुपये तक की जमानत लेने का अधिकार होगा। इसके बाद भी यदि समाचार पत्र सरकार की नज़र में किसी आपत्तिजनक साम्रगी को प्रकाशित करता है तो सरकार के पास उसके पंजीकरण को समाप्त करने एवं अख़बार की समस्त प्रतियाँ जब्त करने का अधिकार होगा। अधिनियम के शिकार समाचार पत्र दो महीने के अन्दर स्पेशल ट्रिब्यूनल के पास अपील कर सकते थे।
    प्रथम विश्वयुद्ध के समय 'भारत सुरक्षा अधिनियम' पास कर राजनैतिक आंदोलन एवं स्वतन्त्र आलोचना पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 1921 ई. सर तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में एक 'प्रेस इन्क्वायरी कमेटी' नियुक्त की गई। समिति के ही सुझावों पर 1908 और 1910 ई. के अधिनियमों को समाप्त किया गया। 1931 ई. में 'इंडियन प्रेस इमरजेंसी एक्ट' लागू हुआ। इस अधिनियम द्वारा 1910 ई. के प्रेस अधिनियम को पुनः लागू कर दिया गया। इस समयगांधी जी द्वारा चलाये गये सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रचार को दबाने के लिए इस अधिनियम को विस्तृत कर 'क्रिमिनल अमैंडमेंट एक्ट' अथवा 'आपराधिक संशोधित अधिनियम' लागू किया गया। मार्च1947 में भारत सरकार ने 'प्रेस इन्क्वायरी कमेटी' की स्थापना समाचार पत्रों से जुड़े हुए क़ानून की समीक्षा के लिए किया।
    भारत में समाचार पत्रों एवं प्रेस के इतिहास के विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि जहाँ एक ओर लॉर्ड वेलेज़लीलॉर्ड मिण्टो, लॉर्ड एडम्स, लॉर्ड कैनिंग तथालॉर्ड लिटन जैसे प्रशासकों ने प्रेस की स्वतंत्रता का दमन किया, वहीं दूसरी ओर लॉर्ड बैंटिकलॉर्ड हेस्टिंग्सचार्ल्स मेटकॉफ़लॉर्ड मैकाले एवं लॉर्ड रिपनजैसे लोगों ने प्रेस की आज़ादी का समर्थन किया। 'हिन्दू पैट्रियाट' के सम्पादक 'क्रिस्टोदास पाल' को 'भारतीय पत्रकारिता का ‘राजकुमार’ कहा गया है।
    19वीं शताब्दी में भारतीयों द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र
    समाचार पत्रसंस्थापक/सम्पादभाषाप्रकाशन स्थानवर्ष
    अमृत बाज़ार पत्रिकामोतीलाल घोषबंगलाकलकत्ता1868 ई.
    अमृत बाज़ार पत्रिकामोतीलाल घोषअंग्रेज़ीकलकत्ता1878 ई.
    सोम प्रकाशईश्वरचन्द्र विद्यासागरबंगलाकलकत्ता1859 ई.
    बंगवासीजोगिन्दर नाथ बोसबंगलाकलकत्ता1881 ई.
    संजीवनीके.के. मित्राबंगलाकलकत्ता
    हिन्दूवीर राघवाचारीअंग्रेज़ीमद्रास1878 ई.
    केसरीबाल गंगाधर तिलकमराठीबम्बई1881 ई.
    मराठाबाल गंगाधर तिलक[1]अंग्रेज़ी--
    हिन्दूएम.जी. रानाडेअंग्रेज़ीबम्बई1881 ई.
    नेटिव ओपीनियनवी.एन. मांडलिकअंग्रेज़ीबम्बई1864 ई.
    बंगालीसुरेन्द्रनाथ बनर्जीअंग्रेज़ीकलकत्ता1879 ई.
    भारत मित्रबालमुकुन्द गुप्तहिन्दी--
    हिन्दुस्तानमदन मोहन मालवीयहिन्दी--
    हिन्द-ए-स्थानरामपाल सिंहहिन्दीकालाकांकर (उत्तर प्रदेश)-
    बम्बई दर्पणबाल शास्त्रीमराठीबम्बई1832 ई.
    कविवचन सुधाभारतेन्दु हरिश्चन्द्रहिन्दीउत्तर प्रदेश1867 ई.
    हरिश्चन्द्र मैगजीनभारतेन्दु हरिश्चन्द्रहिन्दीउत्तर प्रदेश1872 ई.
    हिन्दुस्तान स्टैंडर्डसच्चिदानन्द सिन्हाअंग्रेज़ी-1899 ई.
    ज्ञान प्रदायिनीनवीन चन्द्र रायहिन्दी-1866 ई.
    हिन्दी प्रदीपबालकृष्ण भट्टहिन्दीउत्तर प्रदेश1877 ई.
    इंडियन रिव्यूजी.ए. नटेशनअंग्रेज़ीमद्रास-
    मॉडर्न रिव्यूरामानन्द चटर्जीअंग्रेज़ीकलकत्ता-
    यंग इंडियामहात्मा गाँधीअंग्रेज़ीअहमदाबाद8 अक्टूबर1919 ई.
    नव जीवनमहात्मा गाँधीहिन्दीगुजरातीअहमदाबाद7 अक्टूबर, 1919 ई.
    हरिजनमहात्मा गाँधीहिन्दी, गुजरातीपूना11 फ़रवरी1933 ई.
    इनडिपेंडेसमोतीलाल नेहरूअंग्रेज़ी-1919 ई.
    आजशिवप्रसाद गुप्तहिन्दी--
    हिन्दुस्तान टाइम्सके.एम.पणिक्करअंग्रेज़ीदिल्ली1920 ई.
    नेशनल हेराल्डजवाहरलाल नेहरूअंग्रेज़ीदिल्लीअगस्त1938 ई.
    उद्दण्ड मार्तण्डजुगल किशोरहिन्दी (प्रथम)कानपुर1826 ई.
    द ट्रिब्यूनसर दयाल सिंह मजीठियाअंग्रेज़ीचण्डीगढ़1877 ई.
    अल हिलालअबुल कलाम आज़ादउर्दूकलकत्ता1912 ई.
    अल बिलागअबुल कलाम आज़ादउर्दूकलकत्ता1913 ई.
    कामरेडमौलाना मुहम्मद अलीअंग्रेज़ी--
    हमदर्दमौलाना मुहम्मद अलीउर्दू--
    प्रताप पत्रगणेश शंकर विद्यार्थीहिन्दीकानपुर1910 ई.
    गदरगदर पार्टी द्वाराउर्दू/गुरुमुखीसॉन फ़्रांसिस्को1913 ई.
    गदरगदर पार्टी द्वारापंजाबी-1914 ई.
    हिन्दू पैट्रियाटहरिश्चन्द्र मुखर्जीअंग्रेज़ी-1855 ई.
    मद्रास स्टैंडर्ड, कॉमन वील, न्यू इंडियाएनी बेसेंटअंग्रेज़ी-1914 ई.
    सोशलिस्टएस.ए.डांगेअंग्रेज़ी-1922 ई.
    साभारः-  http://hi.bharatdiscovery.org