1. चंबल संभाग – 13सीटें
बीजेपी
-4, कांग्रेस-7, बसपा-2
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क्रं.
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विधानसभा क्षेत्र
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भाजपा
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कांग्रेस
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विजयी
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पार्टी
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संभाग
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1
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श्योपुर (चंबल
संभाग)
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दुर्गालाल विजय
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बृजराज सिंह चौहान
|
बृजराज सिंह चौहान
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कांग्रेस
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चंबल
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2
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विजयपुर
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सीताराम आदिवासी
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रामनिवास रावत
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रामनिवास रावत
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कांग्रेस
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चंबल
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3
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सबलगढ़
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मेहरबान सिंह रावत
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सुरेश चौधरी
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सुरेश चौधरी
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कांग्रेस
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चंबल
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4
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जौरा
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सुबेदार सिंह सिकरवार
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बनवारी लाल शर्मा
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मणिराम धाकड़
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बसपा
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चंबल
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5
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सुमावली
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सत्यापाल सिंह
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ऐदल सिंह कंसाना
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ऐदल सिंह कंसाना
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कांग्रेस
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चंबल
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6
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मुरैना
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रुस्तम सिंह
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दिनेश गुर्जर
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परसुराम मुदगल
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बसपा
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चंबल
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7
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दिमनी
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शिवमंगल सिंह
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रविंद्र सिंह तोमर
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शिवमंगल सिंह
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भाजपा
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चंबल
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8
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अम्बाह (अजा)
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बंसीलाल जाटव
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अमर सिंह शकवार
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कमलेश सुमन
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भाजपा
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चंबल
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9
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अटेर
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अरविंद भदौरिया
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सत्यदेव कटारे
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अरविंद भदौरिया
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भाजपा
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चंबल
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10
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भिण्ड
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नरेन्द्र सिंह कुशवाह
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राधेश्याम शर्मा
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चौधरी राकेश सिंह
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कांग्रेस
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चंबल
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11
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लहार
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रसाल सिंह
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गोविंद सिंह
|
गोविंद सिंह
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कांग्रेस
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चंबल
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12
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मेहगाँव
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मुकेश चौधरी
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ओ पी एस भदौरिया
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राकेश शुक्ला
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भाजपा
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चंबल
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13
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गोहद (अजा)
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लालसिंह आर्य
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मेवाराम जाटव
|
माखनलाल जाटव
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कांग्रेस
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चंबल
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Thursday, November 21, 2013
चंबल संभाग 13- सीटें
Monday, August 13, 2012
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
- राम प्रसाद बिस्मिल-
- राम प्रसाद बिस्मिल-
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।
रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।
यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।
खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
ऐ शहीदे-मुल्के-मिल्लत हम तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है !
अब न अगले बल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,
सिर्फ मिट जाने की हसरत अब दिले-'बिस्मिल' में है !
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है !
अब न अगले बल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,
सिर्फ मिट जाने की हसरत अब दिले-'बिस्मिल' में है !
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
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देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।
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रहबर - Guide
लज्जत - tasteful
नवर्दी - Battle
मौकतल - Place Where Executions Take Place, Place of Killing
मिल्लत - Nation, faith
लज्जत - tasteful
नवर्दी - Battle
मौकतल - Place Where Executions Take Place, Place of Killing
मिल्लत - Nation, faith
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Many people have asked about the lyrics used in the movie 'Rang De Basanti'. Here it goes -- though remember these lines are not part of the original poem written by 'Ram Prasad Bismil'.
Many people have asked about the lyrics used in the movie 'Rang De Basanti'. Here it goes -- though remember these lines are not part of the original poem written by 'Ram Prasad Bismil'.
है लिये हथियार दुश्मन ताक मे बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिनमें हो जुनून कटते नही तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भडकेगा जो शोला सा हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भडकेगा जो शोला सा हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न
जान हथेली में लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल मैं है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
जान हथेली में लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल मैं है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
दिल मे तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब
होश दुश्मन के उडा देंगे हमे रोको न आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल मे है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
होश दुश्मन के उडा देंगे हमे रोको न आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल मे है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
Wednesday, August 1, 2012
भारत में समाचार पत्रों का संक्षिप्त इतिहास
प्रथम समाचार पत्र
भारत में पहला समाचार पत्र कम्पनी के एक असंतुष्ट सेवक 'विलियम वोल्ट्स' ने 1766 ई. में निकालने का प्रयास किया, लेकिन अपने इस कार्य में वह असफल रहा। इसके बाद भारत में प्रथम समाचार पत्र निकालने का श्रेय 'जेम्स ऑगस्टस हिक्की' को मिला। उसने 1780 ई. में 'बंगाल गजट' का प्रकाशन किया, किन्तु इसमें कम्पनी सरकार की आलोचना की गई थी, जिस कारण उसका प्रेस जब्त कर लिया गया।
समाचार पत्र | स्थान | वर्ष |
---|---|---|
टाइम्स ऑफ़ इंडिया | बम्बई | 1861 ई. |
स्टेट्समैन | कलकत्ता | 1878 ई. |
इंग्लिश मैन | कलकत्ता | - |
फ़्रेण्ड ऑफ़ इंडिया | कलकत्ता | - |
मद्रास मेल | मद्रास | 1868 ई. |
पायनियर | इलाहाबाद | 1876 ई. |
सिविल एण्ड मिलिटरी गजट | लाहौर | - |
इस दौरान कुछ अन्य अंग्रेज़ी अख़बारों का प्रकाशन भी हुआ, जैसे- बंगाल में 'कलकत्ता कैरियर', 'एशियाटिक मिरर', 'ओरियंटल स्टार'; मद्रास में 'मद्रास कैरियर', 'मद्रास गजट'; बम्बई में 'हेराल्ड', 'बांबे गजट' आदि। 1818 ई. में ब्रिटिश व्यापारी 'जेम्स सिल्क बर्किघम' ने 'कलकत्ता जनरल' का सम्पादन किया। बर्किघम ही वह पहला प्रकाशक था, जिसने प्रेस को जनता के प्रतिबिम्ब के स्वरूप में प्रस्तुत किया। प्रेस का आधुनिक रूप जेम्स सिल्क बर्किघम का ही दिया हुआ है। हिक्की तथा बर्किघम का पत्रकारिता के इतिहास में महत्पूर्ण स्थान है। इन दोनों ने तटस्थ पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन का उदाहरण प्रस्तुत कर पत्रकारों को पत्रकारिता की ओर आकर्षित किया।
प्रथम साप्ताहिक अख़बार
पहला भारतीय अंग्रेज़ी समाचार पत्र 1816 ई. में कलकत्ता में गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा 'बंगाल गजट' नाम से निकाला गया। यह साप्ताहिक समाचार पत्र था। 1818 ई. में मार्शमैन के नेतृत्व मेंबंगाली भाषा में 'दिग्दर्शन' मासिक पत्र प्रकाशित हुआ, लेकिन यह पत्र अल्पकालिक सिद्ध हुआ। इसी समय मार्शमैन के संपादन में एक और साप्ताहिक समाचार पत्र 'समाचार दर्पण' प्रकाशित किया गया। 1821 ई. में बंगाली भाषा में साप्ताहिक समाचार पत्र 'संवाद कौमुदी' का प्रकाशन हुआ। इस समाचार पत्र का प्रबन्ध राजा राममोहन राय के हाथों में था। राजा राममोहन राय ने सामाजिक तथा धार्मिक विचारों के विरोधस्वरूप 'समाचार चंद्रिका' का मार्च, 1822 ई. में प्रकाशन किया। इसके अतिरिक्त राय ने अप्रैल, 1822 में फ़ारसी भाषा में 'मिरातुल' अख़बार एवं अंग्रेज़ी भाषा में 'ब्राह्मनिकल मैगजीन' का प्रकाशन किया।
प्रतिबन्ध
समाचार पत्र पर लगने वाले प्रतिबंध के अंतर्गत 1799 ई. में लॉर्ड वेलेज़ली द्वारा पत्रों का 'पत्रेक्षण अधिनियम' और जॉन एडम्स द्वारा 1823 ई. में 'अनुज्ञप्ति नियम' लागू किये गये। एडम्स द्वारा समाचार पत्रों पर लगे प्रतिबन्ध के कारण राजा राममोहन राय का मिरातुल अख़बार बन्द हो गया। 1830 ई. में राजा राममोहन राय, द्वारकानाथ टैगोर एवं प्रसन्न कुमार टैगोर के प्रयासों से बंगाली भाषा में 'बंगदूत' का प्रकाशन आरम्भ हुआ। बम्बई से 1831 ई. मेंगुजराती भाषा में 'जामे जमशेद' तथा 1851 ई. में 'रास्त गोफ़्तार' एवं 'अख़बारे सौदागार' का प्रकाशन हुआ।
लॉर्ड विलियम बैंटिक प्रथम गवर्नर-जनरल था, जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया। कार्यवाहक गर्वनर-जनरल चार्ल्स मेटकॉफ़ने 1823 ई. के प्रतिबन्ध को हटाकर समाचार पत्रों को मुक्ति दिलवाई। यही कारण है कि उसे 'समाचार पत्रों का मुक्तिदाता' भी कहा जाता है। लॉर्ड मैकालेने भी प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया। 1857-1858 के विद्रोह के बाद भारत में समाचार पत्रों को भाषाई आधार के बजाय प्रजातीय आधार पर विभाजित किया गया। अंग्रेज़ी समाचार पत्रों एवं भारतीय समाचार पत्रों के दृष्टिकोण में अंतर होता था। जहाँ अंग्रेज़ी समाचार पत्रों को भारतीय समाचार पत्रों की अपेक्षा ढेर सारी सुविधाये उपलब्ध थीं, वही भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा था।
- सभी समाचार पत्रों में 'इंग्लिश मैन' सर्वाधिक रूढ़िवादी एवं प्रतिक्रियावादी था। 'पायनियर' सरकार का पूर्ण समर्थक समाचार-पत्र था, जबकि 'स्टेट्समैन' कुछ तटस्थ दृष्टिकोण रखता था।
- पंजीकरण अधीनियम
विभिन्न समाचार पत्र अधिनियम अधिनियम वर्ष व्यक्ति समाचार पत्रों का पत्रेक्षण अधिनियम 1799 ई. लॉर्ड वेलेज़ली अनुज्ञप्ति नियम 1823 ई. जॉन एडम्स अनुज्ञप्ति अधिनियम 1857 ई. लॉर्ड केनिंग पंजीकरण अधिनियम 1867 ई. जॉन लॉरेंस देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम 1878 ई. लॉर्ड लिटन समाचार पत्र अधिनियम 1908 ई. लॉर्ड मिण्टो द्वितीय भारतीय समाचार पत्र अधिनियम 1910 ई. लॉर्ड मिण्टो द्वितीय भारतीय समाचार पत्र (संकटकालीन शक्तियाँ) अधिनियम 1931 ई. लॉर्ड इरविन
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट
समाचार पत्र अधिनियम
अन्य अधिनियम
1857 ई. में हुए विद्रोह के परिणामस्वरूप सरकार ने 1857 ई. का 'लाईसेंसिग एक्ट' लागू कर दिया। इस एक्ट के आधार पर बिना सरकारी लाइसेंस के छापाखाना स्थापित करने एवं उसके प्रयोग करने पर रोक लगा दी गई। यह रोक मात्र एक वर्ष तक लागू रही।
- 1867 ई. के 'पंजीकरण अधिनियम' का उद्देश्य था, छापाखानों को नियमित करना। अब हर मुद्रित पुस्तक एवं समाचार पत्र के लिए यह आवश्यक कर दिया कि वे उस पर मुद्रक, प्रकाशक एवं मुद्रण स्थान का नाम लिखें। पुस्तक के छपने के बाद एक प्रति निःशुल्क स्थानीय सरकार को देनी होती थी। वहाबी विद्रोह से जुड़े लोगों द्वारा सरकार विरोधी लेख लिखने के कारण सरकार ने 'भारतीय दण्ड संहिता' की धारा 124 में 124-क जोड़ कर ऐसे लोगों के लिए आजीवन निर्वासन, अल्प निर्वासन व जुर्माने की व्यवस्था की।1857 ई. के संग्राम के बाद भारतीय समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई और अब वे अधिक मुखर होकर सरकार के आलोचक बन गये। इसी समय बड़े भयानक अकाल से लगभग 60 लाख लोग काल के ग्रास बन गये थे, वहीं दूसरी ओर जनवरी, 1877 मेंदिल्ली में हुए 'दिल्ली दरबार' पर अंग्रेज़ सरकार ने बहुत ज़्यादा फिजूलख़र्ची की। परिणामस्वरूप लॉर्ड लिटन की साम्राज्यवादी प्रवृति के ख़िलाफ़ भारतीय अख़बारों ने आग उगलना शुरू कर दिया। लिंटन ने 1878 ई. में 'देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम' द्वारा भारतीय समाचार पत्रों की स्वतन्त्रता नष्ट कर दी।'वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट' तत्कालीन लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण राष्ट्रवादी समाचार पत्र 'सोम प्रकाश' को लक्ष्य बनाकर लाया गया था। दूसरे शब्दों में यह अधिनियम मात्र 'सोम प्रकाश' पर लागू हो सका। लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए 'अमृत बाजार पत्रिका' (समाचार पत्र), जो बंगला भाषा की थी, अंग्रेज़ी साप्ताहिक में परिवर्तित हो गयी। सोम प्रकाश, भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर आदि के ख़िलाफ़ मुकदमें चलाये गये। इस अधिनियम के तहत समाचार पत्रों को न्यायलय में अपील का कोई अधिकार नहीं था। वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को 'मुंह बन्द करने वाला अधिनियम' भी कहा गया है। इस घृणित अधिनियम को लॉर्ड रिपन ने 1882 ई. में रद्द कर दिया।लॉर्ड कर्ज़न द्वारा 'बंगाल विभाजन' के कारण देश में उत्पन्न अशान्ति तथा 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' में चरमपंथियों के बढ़ते प्रभाव के कारण अख़बारों के द्वारा सरकार की आलोचना का अनुपात बढ़ने लगा। अतः सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए 1908 ई. का समाचार पत्र अधिनियम लागू किया। इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई कि जिस अख़बार के लेख में हिंसा व हत्या को प्रेरणा मिलेगी, उसके छापाखाने व सम्पत्ति को जब्त कर लिया जायेगा। अधिनियम में दी गई नई व्यवस्था के अन्तर्गत 15 दिन के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की सुविधा दी गई। इस अधिनियम द्वारा नौ समाचार पत्रों के विरुद्व मुकदमें चलाये गये एवं सात के मुद्रणालय को जब्त करने का आदेश दिया गया।1910 ई. के 'भारतीय समाचार पत्र अधिनियम' में यह व्यवस्था थी कि समाचार पत्र के प्रकाशक को कम से कम 500 रुपये और अधिक से अधिक 2000 रुपये पंजीकरण जमानत के रूप में स्थानीय सरकार को देना होगा, इसके बाद भी सरकार को पंजीकरण समाप्त करने एवं जमानत जब्त करने का अधिकार होगा तथा दोबारा पंजीकरण के लिए सरकार को 1000 रुपये से 10000 रुपये तक की जमानत लेने का अधिकार होगा। इसके बाद भी यदि समाचार पत्र सरकार की नज़र में किसी आपत्तिजनक साम्रगी को प्रकाशित करता है तो सरकार के पास उसके पंजीकरण को समाप्त करने एवं अख़बार की समस्त प्रतियाँ जब्त करने का अधिकार होगा। अधिनियम के शिकार समाचार पत्र दो महीने के अन्दर स्पेशल ट्रिब्यूनल के पास अपील कर सकते थे।प्रथम विश्वयुद्ध के समय 'भारत सुरक्षा अधिनियम' पास कर राजनैतिक आंदोलन एवं स्वतन्त्र आलोचना पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 1921 ई. सर तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में एक 'प्रेस इन्क्वायरी कमेटी' नियुक्त की गई। समिति के ही सुझावों पर 1908 और 1910 ई. के अधिनियमों को समाप्त किया गया। 1931 ई. में 'इंडियन प्रेस इमरजेंसी एक्ट' लागू हुआ। इस अधिनियम द्वारा 1910 ई. के प्रेस अधिनियम को पुनः लागू कर दिया गया। इस समयगांधी जी द्वारा चलाये गये सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रचार को दबाने के लिए इस अधिनियम को विस्तृत कर 'क्रिमिनल अमैंडमेंट एक्ट' अथवा 'आपराधिक संशोधित अधिनियम' लागू किया गया। मार्च, 1947 में भारत सरकार ने 'प्रेस इन्क्वायरी कमेटी' की स्थापना समाचार पत्रों से जुड़े हुए क़ानून की समीक्षा के लिए किया।भारत में समाचार पत्रों एवं प्रेस के इतिहास के विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि जहाँ एक ओर लॉर्ड वेलेज़ली, लॉर्ड मिण्टो, लॉर्ड एडम्स, लॉर्ड कैनिंग तथालॉर्ड लिटन जैसे प्रशासकों ने प्रेस की स्वतंत्रता का दमन किया, वहीं दूसरी ओर लॉर्ड बैंटिक, लॉर्ड हेस्टिंग्स, चार्ल्स मेटकॉफ़, लॉर्ड मैकाले एवं लॉर्ड रिपनजैसे लोगों ने प्रेस की आज़ादी का समर्थन किया। 'हिन्दू पैट्रियाट' के सम्पादक 'क्रिस्टोदास पाल' को 'भारतीय पत्रकारिता का ‘राजकुमार’ कहा गया है।
साभारः- http://hi.bharatdiscovery.org19वीं शताब्दी में भारतीयों द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र समाचार पत्र संस्थापक/सम्पाद भाषा प्रकाशन स्थान वर्ष अमृत बाज़ार पत्रिका मोतीलाल घोष बंगला कलकत्ता 1868 ई. अमृत बाज़ार पत्रिका मोतीलाल घोष अंग्रेज़ी कलकत्ता 1878 ई. सोम प्रकाश ईश्वरचन्द्र विद्यासागर बंगला कलकत्ता 1859 ई. बंगवासी जोगिन्दर नाथ बोस बंगला कलकत्ता 1881 ई. संजीवनी के.के. मित्रा बंगला कलकत्ता हिन्दू वीर राघवाचारी अंग्रेज़ी मद्रास 1878 ई. केसरी बाल गंगाधर तिलक मराठी बम्बई 1881 ई. मराठा बाल गंगाधर तिलक[1] अंग्रेज़ी - - हिन्दू एम.जी. रानाडे अंग्रेज़ी बम्बई 1881 ई. नेटिव ओपीनियन वी.एन. मांडलिक अंग्रेज़ी बम्बई 1864 ई. बंगाली सुरेन्द्रनाथ बनर्जी अंग्रेज़ी कलकत्ता 1879 ई. भारत मित्र बालमुकुन्द गुप्त हिन्दी - - हिन्दुस्तान मदन मोहन मालवीय हिन्दी - - हिन्द-ए-स्थान रामपाल सिंह हिन्दी कालाकांकर (उत्तर प्रदेश) - बम्बई दर्पण बाल शास्त्री मराठी बम्बई 1832 ई. कविवचन सुधा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिन्दी उत्तर प्रदेश 1867 ई. हरिश्चन्द्र मैगजीन भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिन्दी उत्तर प्रदेश 1872 ई. हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड सच्चिदानन्द सिन्हा अंग्रेज़ी - 1899 ई. ज्ञान प्रदायिनी नवीन चन्द्र राय हिन्दी - 1866 ई. हिन्दी प्रदीप बालकृष्ण भट्ट हिन्दी उत्तर प्रदेश 1877 ई. इंडियन रिव्यू जी.ए. नटेशन अंग्रेज़ी मद्रास - मॉडर्न रिव्यू रामानन्द चटर्जी अंग्रेज़ी कलकत्ता - यंग इंडिया महात्मा गाँधी अंग्रेज़ी अहमदाबाद 8 अक्टूबर, 1919 ई. नव जीवन महात्मा गाँधी हिन्दी, गुजराती अहमदाबाद 7 अक्टूबर, 1919 ई. हरिजन महात्मा गाँधी हिन्दी, गुजराती पूना 11 फ़रवरी, 1933 ई. इनडिपेंडेस मोतीलाल नेहरू अंग्रेज़ी - 1919 ई. आज शिवप्रसाद गुप्त हिन्दी - - हिन्दुस्तान टाइम्स के.एम.पणिक्कर अंग्रेज़ी दिल्ली 1920 ई. नेशनल हेराल्ड जवाहरलाल नेहरू अंग्रेज़ी दिल्ली अगस्त, 1938 ई. उद्दण्ड मार्तण्ड जुगल किशोर हिन्दी (प्रथम) कानपुर 1826 ई. द ट्रिब्यून सर दयाल सिंह मजीठिया अंग्रेज़ी चण्डीगढ़ 1877 ई. अल हिलाल अबुल कलाम आज़ाद उर्दू कलकत्ता 1912 ई. अल बिलाग अबुल कलाम आज़ाद उर्दू कलकत्ता 1913 ई. कामरेड मौलाना मुहम्मद अली अंग्रेज़ी - - हमदर्द मौलाना मुहम्मद अली उर्दू - - प्रताप पत्र गणेश शंकर विद्यार्थी हिन्दी कानपुर 1910 ई. गदर गदर पार्टी द्वारा उर्दू/गुरुमुखी सॉन फ़्रांसिस्को 1913 ई. गदर गदर पार्टी द्वारा पंजाबी - 1914 ई. हिन्दू पैट्रियाट हरिश्चन्द्र मुखर्जी अंग्रेज़ी - 1855 ई. मद्रास स्टैंडर्ड, कॉमन वील, न्यू इंडिया एनी बेसेंट अंग्रेज़ी - 1914 ई. सोशलिस्ट एस.ए.डांगे अंग्रेज़ी - 1922 ई.
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