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Wednesday, August 1, 2012

भारत में समाचार पत्रों का संक्षिप्त इतिहास


भारत में समाचार पत्रों का इतिहासः- यूरोपीय लोगों के भारत में प्रवेश के साथ ही प्रारम्भ होता है। सर्वप्रथम भारत में प्रिंटिग प्रेस लाने का श्रेयपुर्तग़ालियों को दिया जाता है। 1557 ई. में गोवा के कुछ पादरी लोगों ने भारत की पहली पुस्तक छापी। 1684 ई. में अंग्रेज़ ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भी भारत की पहली पुस्तक की छपाई की थी। 1684 ई. में ही कम्पनी ने भारत में प्रथम प्रिंटिग प्रेस (मुद्रणालय) की स्थापना की।

प्रथम समाचार पत्र
भारत में पहला समाचार पत्र कम्पनी के एक असंतुष्ट सेवक 'विलियम वोल्ट्स' ने 1766 ई. में निकालने का प्रयास किया, लेकिन अपने इस कार्य में वह असफल रहा। इसके बाद भारत में प्रथम समाचार पत्र निकालने का श्रेय 'जेम्स ऑगस्टस हिक्की' को मिला। उसने 1780 ई. में 'बंगाल गजट' का प्रकाशन किया, किन्तु इसमें कम्पनी सरकार की आलोचना की गई थी, जिस कारण उसका प्रेस जब्त कर लिया गया।
अंग्रेज़ों द्वारा सम्पादित समाचार पत्र
समाचार पत्रस्थानवर्ष
टाइम्स ऑफ़ इंडियाबम्बई1861 ई.
स्टेट्समैनकलकत्ता1878 ई.
इंग्लिश मैनकलकत्ता-
फ़्रेण्ड ऑफ़ इंडियाकलकत्ता-
मद्रास मेलमद्रास1868 ई.
पायनियरइलाहाबाद1876 ई.
सिविल एण्ड मिलिटरी गजटलाहौर-
इस दौरान कुछ अन्य अंग्रेज़ी अख़बारों का प्रकाशन भी हुआ, जैसे- बंगाल में 'कलकत्ता कैरियर', 'एशियाटिक मिरर', 'ओरियंटल स्टार'; मद्रास में 'मद्रास कैरियर', 'मद्रास गजट'; बम्बई में 'हेराल्ड', 'बांबे गजट' आदि। 1818 ई. में ब्रिटिश व्यापारी 'जेम्स सिल्क बर्किघम' ने 'कलकत्ता जनरल' का सम्पादन किया। बर्किघम ही वह पहला प्रकाशक था, जिसने प्रेस को जनता के प्रतिबिम्ब के स्वरूप में प्रस्तुत किया। प्रेस का आधुनिक रूप जेम्स सिल्क बर्किघम का ही दिया हुआ है। हिक्की तथा बर्किघम का पत्रकारिता के इतिहास में महत्पूर्ण स्थान है। इन दोनों ने तटस्थ पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन का उदाहरण प्रस्तुत कर पत्रकारों को पत्रकारिता की ओर आकर्षित किया।
प्रथम साप्ताहिक अख़बार
पहला भारतीय अंग्रेज़ी समाचार पत्र 1816 ई. में कलकत्ता में गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा 'बंगाल गजट' नाम से निकाला गया। यह साप्ताहिक समाचार पत्र था। 1818 ई. में मार्शमैन के नेतृत्व मेंबंगाली भाषा में 'दिग्दर्शन' मासिक पत्र प्रकाशित हुआ, लेकिन यह पत्र अल्पकालिक सिद्ध हुआ। इसी समय मार्शमैन के संपादन में एक और साप्ताहिक समाचार पत्र 'समाचार दर्पण' प्रकाशित किया गया। 1821 ई. में बंगाली भाषा में साप्ताहिक समाचार पत्र 'संवाद कौमुदी' का प्रकाशन हुआ। इस समाचार पत्र का प्रबन्ध राजा राममोहन राय के हाथों में था। राजा राममोहन राय ने सामाजिक तथा धार्मिक विचारों के विरोधस्वरूप 'समाचार चंद्रिका' का मार्च, 1822 ई. में प्रकाशन किया। इसके अतिरिक्त राय ने अप्रैल, 1822 में फ़ारसी भाषा में 'मिरातुल' अख़बार एवं अंग्रेज़ी भाषा में 'ब्राह्मनिकल मैगजीन' का प्रकाशन किया।

प्रतिबन्ध

समाचार पत्र पर लगने वाले प्रतिबंध के अंतर्गत 1799 ई. में लॉर्ड वेलेज़ली द्वारा पत्रों का 'पत्रेक्षण अधिनियम' और जॉन एडम्स द्वारा 1823 ई. में 'अनुज्ञप्ति नियम' लागू किये गये। एडम्स द्वारा समाचार पत्रों पर लगे प्रतिबन्ध के कारण राजा राममोहन राय का मिरातुल अख़बार बन्द हो गया। 1830 ई. में राजा राममोहन राय, द्वारकानाथ टैगोर एवं प्रसन्न कुमार टैगोर के प्रयासों से बंगाली भाषा में 'बंगदूत' का प्रकाशन आरम्भ हुआ। बम्बई से 1831 ई. मेंगुजराती भाषा में 'जामे जमशेद' तथा 1851 ई. में 'रास्त गोफ़्तार' एवं 'अख़बारे सौदागार' का प्रकाशन हुआ।
लॉर्ड विलियम बैंटिक प्रथम गवर्नर-जनरल था, जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया। कार्यवाहक गर्वनर-जनरल चार्ल्स मेटकॉफ़ने 1823 ई. के प्रतिबन्ध को हटाकर समाचार पत्रों को मुक्ति दिलवाई। यही कारण है कि उसे 'समाचार पत्रों का मुक्तिदाता' भी कहा जाता है। लॉर्ड मैकालेने भी प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया। 1857-1858 के विद्रोह के बाद भारत में समाचार पत्रों को भाषाई आधार के बजाय प्रजातीय आधार पर विभाजित किया गया। अंग्रेज़ी समाचार पत्रों एवं भारतीय समाचार पत्रों के दृष्टिकोण में अंतर होता था। जहाँ अंग्रेज़ी समाचार पत्रों को भारतीय समाचार पत्रों की अपेक्षा ढेर सारी सुविधाये उपलब्ध थीं, वही भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा था।
  • सभी समाचार पत्रों में 'इंग्लिश मैन' सर्वाधिक रूढ़िवादी एवं प्रतिक्रियावादी था। 'पायनियर' सरकार का पूर्ण समर्थक समाचार-पत्र था, जबकि 'स्टेट्समैन' कुछ तटस्थ दृष्टिकोण रखता था।
  • पंजीकरण अधीनियम
    • विभिन्न समाचार पत्र अधिनियम
      अधिनियमवर्षव्यक्ति
      समाचार पत्रों का पत्रेक्षण अधिनियम1799 ई.लॉर्ड वेलेज़ली
      अनुज्ञप्ति नियम1823 ई.जॉन एडम्स
      अनुज्ञप्ति अधिनियम1857 ई.लॉर्ड केनिंग
      पंजीकरण अधिनियम1867 ई.जॉन लॉरेंस
      देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम1878 ई.लॉर्ड लिटन
      समाचार पत्र अधिनियम1908 ई.लॉर्ड मिण्टो द्वितीय
      भारतीय समाचार पत्र अधिनियम1910 ई.लॉर्ड मिण्टो द्वितीय
      भारतीय समाचार पत्र (संकटकालीन शक्तियाँ) अधिनियम1931 ई.लॉर्ड इरविन
    स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव
    वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट
    समाचार पत्र अधिनियम
    अन्य अधिनियम
    1857 ई. में हुए विद्रोह के परिणामस्वरूप सरकार ने 1857 ई. का 'लाईसेंसिग एक्ट' लागू कर दिया। इस एक्ट के आधार पर बिना सरकारी लाइसेंस के छापाखाना स्थापित करने एवं उसके प्रयोग करने पर रोक लगा दी गई। यह रोक मात्र एक वर्ष तक लागू रही।
  • 1867 ई. के 'पंजीकरण अधिनियम' का उद्देश्य था, छापाखानों को नियमित करना। अब हर मुद्रित पुस्तक एवं समाचार पत्र के लिए यह आवश्यक कर दिया कि वे उस पर मुद्रक, प्रकाशक एवं मुद्रण स्थान का नाम लिखें। पुस्तक के छपने के बाद एक प्रति निःशुल्क स्थानीय सरकार को देनी होती थी। वहाबी विद्रोह से जुड़े लोगों द्वारा सरकार विरोधी लेख लिखने के कारण सरकार ने 'भारतीय दण्ड संहिता' की धारा 124 में 124-क जोड़ कर ऐसे लोगों के लिए आजीवन निर्वासन, अल्प निर्वासन व जुर्माने की व्यवस्था की।
    1857 ई. के संग्राम के बाद भारतीय समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई और अब वे अधिक मुखर होकर सरकार के आलोचक बन गये। इसी समय बड़े भयानक अकाल से लगभग 60 लाख लोग काल के ग्रास बन गये थे, वहीं दूसरी ओर जनवरी1877 मेंदिल्ली में हुए 'दिल्ली दरबार' पर अंग्रेज़ सरकार ने बहुत ज़्यादा फिजूलख़र्ची की। परिणामस्वरूप लॉर्ड लिटन की साम्राज्यवादी प्रवृति के ख़िलाफ़ भारतीय अख़बारों ने आग उगलना शुरू कर दिया। लिंटन ने 1878 ई. में 'देशी भाषा समाचार पत्र अधिनियम' द्वारा भारतीय समाचार पत्रों की स्वतन्त्रता नष्ट कर दी।
    'वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट' तत्कालीन लोकप्रिय एवं महत्वपूर्ण राष्ट्रवादी समाचार पत्र 'सोम प्रकाश' को लक्ष्य बनाकर लाया गया था। दूसरे शब्दों में यह अधिनियम मात्र 'सोम प्रकाश' पर लागू हो सका। लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए 'अमृत बाजार पत्रिका' (समाचार पत्र), जो बंगला भाषा की थी, अंग्रेज़ी साप्ताहिक में परिवर्तित हो गयी। सोम प्रकाश, भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर आदि के ख़िलाफ़ मुकदमें चलाये गये। इस अधिनियम के तहत समाचार पत्रों को न्यायलय में अपील का कोई अधिकार नहीं था। वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को 'मुंह बन्द करने वाला अधिनियम' भी कहा गया है। इस घृणित अधिनियम को लॉर्ड रिपन ने 1882 ई. में रद्द कर दिया।
    लॉर्ड कर्ज़न द्वारा 'बंगाल विभाजन' के कारण देश में उत्पन्न अशान्ति तथा 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' में चरमपंथियों के बढ़ते प्रभाव के कारण अख़बारों के द्वारा सरकार की आलोचना का अनुपात बढ़ने लगा। अतः सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए 1908 ई. का समाचार पत्र अधिनियम लागू किया। इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई कि जिस अख़बार के लेख में हिंसा व हत्या को प्रेरणा मिलेगी, उसके छापाखाने व सम्पत्ति को जब्त कर लिया जायेगा। अधिनियम में दी गई नई व्यवस्था के अन्तर्गत 15 दिन के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की सुविधा दी गई। इस अधिनियम द्वारा नौ समाचार पत्रों के विरुद्व मुकदमें चलाये गये एवं सात के मुद्रणालय को जब्त करने का आदेश दिया गया।
    1910 ई. के 'भारतीय समाचार पत्र अधिनियम' में यह व्यवस्था थी कि समाचार पत्र के प्रकाशक को कम से कम 500 रुपये और अधिक से अधिक 2000 रुपये पंजीकरण जमानत के रूप में स्थानीय सरकार को देना होगा, इसके बाद भी सरकार को पंजीकरण समाप्त करने एवं जमानत जब्त करने का अधिकार होगा तथा दोबारा पंजीकरण के लिए सरकार को 1000 रुपये से 10000 रुपये तक की जमानत लेने का अधिकार होगा। इसके बाद भी यदि समाचार पत्र सरकार की नज़र में किसी आपत्तिजनक साम्रगी को प्रकाशित करता है तो सरकार के पास उसके पंजीकरण को समाप्त करने एवं अख़बार की समस्त प्रतियाँ जब्त करने का अधिकार होगा। अधिनियम के शिकार समाचार पत्र दो महीने के अन्दर स्पेशल ट्रिब्यूनल के पास अपील कर सकते थे।
    प्रथम विश्वयुद्ध के समय 'भारत सुरक्षा अधिनियम' पास कर राजनैतिक आंदोलन एवं स्वतन्त्र आलोचना पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 1921 ई. सर तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में एक 'प्रेस इन्क्वायरी कमेटी' नियुक्त की गई। समिति के ही सुझावों पर 1908 और 1910 ई. के अधिनियमों को समाप्त किया गया। 1931 ई. में 'इंडियन प्रेस इमरजेंसी एक्ट' लागू हुआ। इस अधिनियम द्वारा 1910 ई. के प्रेस अधिनियम को पुनः लागू कर दिया गया। इस समयगांधी जी द्वारा चलाये गये सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रचार को दबाने के लिए इस अधिनियम को विस्तृत कर 'क्रिमिनल अमैंडमेंट एक्ट' अथवा 'आपराधिक संशोधित अधिनियम' लागू किया गया। मार्च1947 में भारत सरकार ने 'प्रेस इन्क्वायरी कमेटी' की स्थापना समाचार पत्रों से जुड़े हुए क़ानून की समीक्षा के लिए किया।
    भारत में समाचार पत्रों एवं प्रेस के इतिहास के विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि जहाँ एक ओर लॉर्ड वेलेज़लीलॉर्ड मिण्टो, लॉर्ड एडम्स, लॉर्ड कैनिंग तथालॉर्ड लिटन जैसे प्रशासकों ने प्रेस की स्वतंत्रता का दमन किया, वहीं दूसरी ओर लॉर्ड बैंटिकलॉर्ड हेस्टिंग्सचार्ल्स मेटकॉफ़लॉर्ड मैकाले एवं लॉर्ड रिपनजैसे लोगों ने प्रेस की आज़ादी का समर्थन किया। 'हिन्दू पैट्रियाट' के सम्पादक 'क्रिस्टोदास पाल' को 'भारतीय पत्रकारिता का ‘राजकुमार’ कहा गया है।
    19वीं शताब्दी में भारतीयों द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र
    समाचार पत्रसंस्थापक/सम्पादभाषाप्रकाशन स्थानवर्ष
    अमृत बाज़ार पत्रिकामोतीलाल घोषबंगलाकलकत्ता1868 ई.
    अमृत बाज़ार पत्रिकामोतीलाल घोषअंग्रेज़ीकलकत्ता1878 ई.
    सोम प्रकाशईश्वरचन्द्र विद्यासागरबंगलाकलकत्ता1859 ई.
    बंगवासीजोगिन्दर नाथ बोसबंगलाकलकत्ता1881 ई.
    संजीवनीके.के. मित्राबंगलाकलकत्ता
    हिन्दूवीर राघवाचारीअंग्रेज़ीमद्रास1878 ई.
    केसरीबाल गंगाधर तिलकमराठीबम्बई1881 ई.
    मराठाबाल गंगाधर तिलक[1]अंग्रेज़ी--
    हिन्दूएम.जी. रानाडेअंग्रेज़ीबम्बई1881 ई.
    नेटिव ओपीनियनवी.एन. मांडलिकअंग्रेज़ीबम्बई1864 ई.
    बंगालीसुरेन्द्रनाथ बनर्जीअंग्रेज़ीकलकत्ता1879 ई.
    भारत मित्रबालमुकुन्द गुप्तहिन्दी--
    हिन्दुस्तानमदन मोहन मालवीयहिन्दी--
    हिन्द-ए-स्थानरामपाल सिंहहिन्दीकालाकांकर (उत्तर प्रदेश)-
    बम्बई दर्पणबाल शास्त्रीमराठीबम्बई1832 ई.
    कविवचन सुधाभारतेन्दु हरिश्चन्द्रहिन्दीउत्तर प्रदेश1867 ई.
    हरिश्चन्द्र मैगजीनभारतेन्दु हरिश्चन्द्रहिन्दीउत्तर प्रदेश1872 ई.
    हिन्दुस्तान स्टैंडर्डसच्चिदानन्द सिन्हाअंग्रेज़ी-1899 ई.
    ज्ञान प्रदायिनीनवीन चन्द्र रायहिन्दी-1866 ई.
    हिन्दी प्रदीपबालकृष्ण भट्टहिन्दीउत्तर प्रदेश1877 ई.
    इंडियन रिव्यूजी.ए. नटेशनअंग्रेज़ीमद्रास-
    मॉडर्न रिव्यूरामानन्द चटर्जीअंग्रेज़ीकलकत्ता-
    यंग इंडियामहात्मा गाँधीअंग्रेज़ीअहमदाबाद8 अक्टूबर1919 ई.
    नव जीवनमहात्मा गाँधीहिन्दीगुजरातीअहमदाबाद7 अक्टूबर, 1919 ई.
    हरिजनमहात्मा गाँधीहिन्दी, गुजरातीपूना11 फ़रवरी1933 ई.
    इनडिपेंडेसमोतीलाल नेहरूअंग्रेज़ी-1919 ई.
    आजशिवप्रसाद गुप्तहिन्दी--
    हिन्दुस्तान टाइम्सके.एम.पणिक्करअंग्रेज़ीदिल्ली1920 ई.
    नेशनल हेराल्डजवाहरलाल नेहरूअंग्रेज़ीदिल्लीअगस्त1938 ई.
    उद्दण्ड मार्तण्डजुगल किशोरहिन्दी (प्रथम)कानपुर1826 ई.
    द ट्रिब्यूनसर दयाल सिंह मजीठियाअंग्रेज़ीचण्डीगढ़1877 ई.
    अल हिलालअबुल कलाम आज़ादउर्दूकलकत्ता1912 ई.
    अल बिलागअबुल कलाम आज़ादउर्दूकलकत्ता1913 ई.
    कामरेडमौलाना मुहम्मद अलीअंग्रेज़ी--
    हमदर्दमौलाना मुहम्मद अलीउर्दू--
    प्रताप पत्रगणेश शंकर विद्यार्थीहिन्दीकानपुर1910 ई.
    गदरगदर पार्टी द्वाराउर्दू/गुरुमुखीसॉन फ़्रांसिस्को1913 ई.
    गदरगदर पार्टी द्वारापंजाबी-1914 ई.
    हिन्दू पैट्रियाटहरिश्चन्द्र मुखर्जीअंग्रेज़ी-1855 ई.
    मद्रास स्टैंडर्ड, कॉमन वील, न्यू इंडियाएनी बेसेंटअंग्रेज़ी-1914 ई.
    सोशलिस्टएस.ए.डांगेअंग्रेज़ी-1922 ई.
    साभारः-  http://hi.bharatdiscovery.org



Wednesday, July 18, 2012











....................नहीं रहे काका..................
 बीते जमाने के बॉलीवुड सुपर स्‍टार राजेश खन्‍ना आज मौत से जिंदगी की जंग हार गए... जी हाँ नहीं रहे काका.... राजेश खन्ना ने बुधवार दोपहर अपने मुंबई स्थित आवास 'आशीर्वाद' में अंतिम साँस ली.... सूत्रों के मुताबिक राजेश खन्ना का अंतिम संस्कार आज शाम 4.30 बजे या कल सुबह किया जा सकता है... काका ने 69 वर्ष की उम्र में अपनी देह को त्याग दिया... काका को हमारी श्रधांजलि... 

Tuesday, July 17, 2012

काका की अनसुनी कहानियां..


...........................राजेश खन्ना......................
बीते जमाने के बॉलीवुड सुपर स्‍टार राजेश खन्‍ना आज जिंदगी के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। मुंबई के लीलावती अस्‍पताल से छुट्टी मिल चुकी है   परिवार के सूत्रों ने कहा कि अब उनकी तबीयत ठीक है। सूत्र ने कहा, "राजेश खन्ना अब पूरी तरह ठीक हैं और उन्हें सोमवार दोपहर को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। परिवार के सदस्य उनके साथ थे।"
बीते अप्रैल से उन्हें चार बार अस्पताल में दाखिल होना पड़ा । लेकिन परिवार उन्‍हें लगातार ठीक बताने की कोशिश करता रहा है। इस वजह से कयासों का बाज़ार गर्म है।
मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक राजेश खन्ना का लीवर खराब हो गया है। यही वजह है कि उन्हें हफ्ते में तीन बार डायलिसिस की जरूरत भी पड़ती है।
2. बताया जाता है कि राजेश खन्ना के लीवर में खराबी उनकी शराब की लत की वजह से आई है। हालांकि, इस बात की न तो राजेश खन्ना ने कभी पुष्टि की है और न ही उनके किसी करीबी ने। पिछले साल रियलिटी टीवी शो 'बिग बॉस' में भी राजेश खन्ना के शामिल होने की बात सामने आई थी। लेकिन उन्‍होंने आखिरी समय में इस शो से अपना नाम वापस ले लिया था। उस वक्‍त भी सूत्रों के हवाले से यह बात सामने आई थी कि राजेश खन्ना शो में कुछ समय अकेले में बिताने की मांग कर रहे थे ताकि वे अपनी आदत के अनुसार शराब पी सकें। शो के निर्माताओं ने उनकी मांग ठुकरा दी थी। लेकिन इस बात की पुष्टि न तो राजेश खन्ना ने कभी की और न ही बिग बॉस के निर्माताओं की तरफ से आधिकारिक तौर पर ऐसी कोई बात कही गई

3. खन्ना परिवार से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि राजेश खन्ना की हालत गंभीर नहीं है। बस कमजोरी की वजह से उन्हें अस्‍पताल ले जाना पड़ा। अप्रैल में उन्हें तीन-चार दिन के लिए अस्‍पताल में रहना पड़ा था। जून में भी उन्‍हें दो बार अस्‍पताल ले जाना पड़ा था। 23 जून को लीलावती अस्पताल में भर्ती होने पर उन्‍हें करीब दो हफ्ते रहना पड़ा था।

4.राजेश से अलग रह रही उनकी पत्नी डिम्पल कपाड़िया के अलावा उनकी बेटी ट्विंकल खन्‍ना इन दिनों उनकी देखभाल कर रही हैं। डिंपल से उन्‍होंने 1973 में शादी की थी, लेकिन 1984 में उनकी राहें जुदा हो गईं। तब से अलग रहने के बावजूद आज मुश्किल दौर में डिंपल उनका सबसे ज्‍यादा साथ दे रही हैं।

5.  वैसे तो राजेश खन्‍ना ने डिंपल पर लट्टू होकर उनसे प्‍यार किया और फिर शादी की थी, लेकिन शादी के बाद वह डिंपल को बांध कर रख नहीं सके। उनके स्‍वभाव की वजह से डिम्‍पल ने आखिरकार खुद को उनकी जिंदगी से बाहर कर लिया। डिम्पल ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'मैं वैसा ही करती थी जैसा उन्हें पसंद था। पर इसके लिए कभी उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा। उनके आसपास के लोग उनके चमचों की तरह थे। उनके साथ भी मुझे तालमेल बैठाना पड़ता था।' डिम्‍पल से उनकी मुलाकात का वाकया भी दिलचस्‍प है। बात सन 1972 के किसी महीने की है। बॉलीवुड में डिम्पल कापडि़या हॉट टॉपिक थीं। चारों और बस यही चर्चा थी कि राजकपूर उन्हें अपनी नई फिल्म 'बॉबी' में बतौर हीरोइन पेश कर रहे थे। यह पहला अवसर था जब राजकपूर एक नए चेहरे को लीड रोल में इंट्रोड्यूस कर रहे थे

जिस समय 'बॉबी' की शूटिंग चल रही थी, उसी दौरान अहमदाबाद में एक फिल्म समारोह आयोजित हुआ। इसमें शामिल होने के लिए मुंबई के बहुत से नामी सितारे बुलाए गए। इन्हें लाने के लिए आयोजकों ने एक चार्टर्ड प्लेन का इंतजाम किया। विमान में राजेश खन्ना सुपर स्टार की हैसियत से मौजूद थे। डिम्पल चूंकि राजकपूर की खोज थीं, इसलिए वह भी अहमदाबाद जा रही थीं। डिंपल के बगल की सीट खाली देख राजेश ने उनसे पूछा, 'क्या मैं इस सीट पर बैठ सकता हूं?' डिंपल भला कहां से इनकार कर सकती थीं। यह पहली मुलाकात गहरी होती गई। अहमदाबाद में समारोह के दौरान दोनों की बराबर मुलाकातें होती रहीं। डिनर और लंच के दौरान दोनों एक-दूसरे को उनकी मनपसंद डिश पेश करते रहे। विमान से मुंबई लौटने से पहले दोनों की प्रेम कहानियां बॉलीवुड में पहुंच गई। जिन लोगों ने दोनों को विमान या फिल्म समारोह में देखा था, वे तो मान रहे थे कि राजेश-डिंपल के बीच कुछ पक रहा है, लेकिन बाकी को यह खबर मात्र गॉसिप लग रही थी।

डिम्पल का नाम पहले ऋषि कपूर से जुड़ रहा था। फिर राजेश खन्ना उम्र में डिम्पल से काफी बड़े थे। डिम्पल तब पंद्रह साल की थीं। राजेश खन्ना 30 पार कर चुके थे। अंजू से लगातार अनबन से परेशान राजेश ने मुंबई पहुंच कर डिम्‍पल से मेल-मुलाकातें जारी रखीं। वे अक्सर समंदर के किनारे मिलते। एक दिन चांदनी रात में ऐसे ही घूमते हुए राजेश खन्‍ना ने डिम्पल के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया। राजेश पर पूरे देश की लड़कियां मरती थीं। तो, डिम्पल उनसे शादी का प्रस्‍ताव कैसे ठुकरा सकती थीं? डिम्पल के पिता चुन्नीभाई कपाडिया को जब इस रिश्ते की बात पता चली, तो उन्हें बेटी की पसंद पर नाज हुआ। धूमधाम से सुपर स्टार की बारात निकली। चुन्नीभाई के आवास जलमहल में शानदार स्वागत हुआ। फिल्म इंडस्ट्री के बड़े-बड़े लोग इस शादी में शामिल हुए। अगर कोई इस शादी में नहीं रहा, तो वे थे ऋषि कपूर और अंजू महेंद्रू। राजेश-डिम्पल की शादी की एक छोटी-सी फिल्म उस समय देश भर के थिएटर्स में फिल्म शुरू होने के पहले दिखाई गई थी।

राजेश खन्‍ना की जिंदगी में कई हसीनाएं आईं और गईं। डिंपल से पहले अंजू महेंद्रू उनकी जिंदगी में आई थीं। अंजू से उनकी मुलाकात कॅरियर के शुरुआती दौर में ही हुई थी। फैशन डिजाइनर अंजू ने 'शोबिज' के लिए राजेश खन्ना की ग्रूमिंग भी की। आठ-नौ साल तक दोनों साथ रहे, लेकिन उनका साथ इससे लंबा नहीं चल सका। कॅरियर में असफलता की वजह से राजेश तब तक काफी चिड़चिड़े हो गए थे। दोनों में हर रोज झगड़े होने लगे। राजेश की सबसे बड़ी आलोचक अंजू ही थी। लेकिन राजेश खन्‍ना को अपनी आलोचना पंसद नहीं थी। बकौल अंजू, 'हमारे रिश्ते में हमेशा कन्फ्यूजन रहा। राजेश को अल्ट्रा मॉडर्न लड़कियाँ आकर्षित करती थीं। पर अगर मैं कभी स्कर्ट पहनती थी, वे कहते थे तुम साड़ी क्यों नहीं पहनती! और मैं साड़ी पहनती थी तो कहते थे तुम भारतीय नारी क्यों बन रही हो! उनको बिलकुल पसंद नहीं था कि कोई उनकी आलोचना करे और मैं उनकी सबसे बड़ी आलोचक थी। मुझे अगर कोई बात बुरी लगती थी तो मैं उनके सामने ही कह देती थी। एक दौर ऐसा था जब उनकी जिंदगी मेरे इर्दगिर्द सिमटी हुई थी। मैं कहां हूं और क्या कर रही हूं, इसकी उनको पूरी जानकारी चाहिए होती थी।' अंजू की जिंदगी में मशहूर क्रिकेटर गैरी सोबर्स की एंट्री होनी शुरू हुई तो उन्‍होंने राजेश से पल्‍ला छुड़ाने में ही बेहतरी समझा। अंजू से संबंध टूटने के बाद राजेश खन्ना ने 1973 में डिम्‍पल से शादी कर ली।
बॉलीवुड में राजेश खन्‍ना की एंट्री 'टैलेंट हंट' के जरिए हुई थी। 1965 में यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्मफेयर ने नया हीरो खोजने के अपने टैलंट हंट अभियान में दस हजार में से आठ लड़के चुने थे, जिनमें एक राजेश खन्ना भी थे। अंत में राजेश खन्ना विजेता घोषित किए गए। सबसे पहले उन्हें राजफिल्म के लिए जीपी सिप्पी ने साइन किया, जिसमें बबीता जैसी बड़ी स्टार थीं। राजेश की पहली प्रदर्शित फिल्म का नाम आखिरी खतहै, जो 1967 में रिलीज हुई थी। 1969 में रिलीज हुई आराधना और दो रास्ते की सफलता के बाद राजेश खन्ना सीधे शिखर पर जा बैठे। उन्हें सुपरस्टार घोषित कर दिया गया और लोगों के बीच उन्हें अपार लोकप्रियता हासिल हुई। सुपरस्टार के सिंहासन पर राजेश खन्ना भले ही कम समय के लिए विराजमान रहे, लेकिन यह माना जाता है कि वैसी लोकप्रियता किसी को हासिल नहीं हुई जो राजेश को हासिल हुई थी। स्टुडियो या किसी निर्माता के दफ्तर के बाहर राजेश खन्ना की सफेद रंग की कार रुकती थी तो लड़कियां उस कार को ही चूम-चूम कर गुलाबी बना देती थीं। निर्माता-निर्देशक राजेश खन्ना के घर के बाहर लाइन लगाए खड़े रहते थे। वे मुंहमांगे दाम चुकाकर उन्हें साइन करना चाहते थे। 1969 से 1975 के बीच राजेश ने कई सुपरहिट फिल्में दीं।
राजेश से टीना मुनीम का भी नाम जुड़ा। दोनों के लिव-इन रिलेशनशिपके चर्चे भी काफी चर्चित रहे। राजेश को लेकर एक बार टीना ने कहा था कि हर झगड़े के बाद वे मुझे गिफ्ट से लाद देते थे, वे हमेशा मुझे लुभाते रहते थे। एक जमाने में राजेश ने कहा भी था कि वे और टीना एक ही टूथब्रश का इस्तेमाल करते हैं। यहां तक कि टीना का कॅरियर संवारने के लिए उन्होंने शक्ति सामंत के डायरेक्शन में अलग-अलगनामक फिल्म भी बनाई थी। इस फिल्म के बारे में तो यहां तक कहा गया था कि यह राजेश खन्ना और डिम्पल की असली जिंदगी पर आधारित थी। लेकिन टीना मुनीम ने भी बाद में उन्हें छोड़कर नए-नए उद्योगपति बने धीरूभाई अंबानी के छोटे बेटे अनिल अंबानी का दामन थाम लिया। यहां तक कि हाल के बरसों में भी उनका नाम अनीता आडवाणी नामक महिला से जुड़ा था। दोनों एक साथ भरपूर वक्त गुजारा करते थे, लेकिन अनीता ने 'काका' से शादी करने से मना कर दिया था

कहा जाता है कि पाइल्स के ऑपरेशन के लिए एक बार राजेश खन्ना को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। अस्पताल में उनके इर्दगिर्द के कमरे निर्माताओं ने बुक करा लिए ताकि मौका मिलते ही वे राजेश को अपनी फिल्मों की कहानी सुना सकें। राजेश खन्ना द्वारा महज चार साल के दौरान लगातार 15 सुपर हिट फिल्में देना आज भी बॉलीवुड में एक रिकॉर्ड है। उन्हें हिंदी सिनेमा का पहला सुपरस्टार कहा जाता है। वैसे, काका को पहली बार बेस्ट ऐक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड 1970 में बनी फिल्म सच्चा झूठाके लिए मिला था, जबकि 1971 में लगातार दूसरी बार बेस्ट ऐक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया। तीन साल बाद फिल्मआविष्कारके लिए भी उन्हें यह अवार्ड मिला। साल 2005 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी दिया गया। उस दौर में पैदा हुए ज्यादातर लड़कों के नाम राजेश रखे गए।

'आराधना', 'सच्चा झूठा', 'कटी पतंग', 'हाथी मेरे साथी', 'मेहबूब की मेहंदी', 'आनंद', 'आन मिलो सजना', 'आपकी कसम'जैसी फिल्मों ने कमाई के नए रिकॉर्ड बनाए। 'आराधना'फिल्म का गाना मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू...उनके करियर का सबसे हिट गीत रहा। 'आनंद' फिल्म राजेश खन्ना के करियर की सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानी जा सकती है, जिसमें उन्होंने कैंसर से ग्रस्त जिंदादिल युवक की भूमिका निभाई। राजेश खन्ना की सफलता के पीछे संगीतकार आरडी बर्मन और गायक किशोर का अहम योगदान रहा है। इनके बनाए और राजेश पर फिल्माए अधिकांश गीत हिट साबित हुए और आज भी सुने जाते हैं। किशोर ने 91 फिल्मों में राजेश को आवाज दी तो आरडी ने उनकी 40 फिल्मों में संगीत दिया। अपनी फिल्मों के संगीत को लेकर राजेश हमेशा सजग रहते हैं। वे गाने की रिकॉर्डिंग के वक्त स्‍टूडियो में रहना पसंद करते थे और अपने सुझावों से संगीत निर्देशकों को अवगत कराते थे।
राजेश ने फिल्म में काम पाने के लिए निर्माताओं के दफ्तर के चक्कर लगाए। स्ट्रगलर होने के बावजूद वे इतनी महंगी कार में निर्माताओं के यहां जाते थे कि उस दौर के हीरो के पास भी वैसी कार नहीं थी। फिल्म इंडस्ट्री में राजेश को प्यार से 'काका 'कहा जाता है। जब वे सुपरस्टार थे तब एक कहावत बड़ी मशहूर थी- ऊपर आका और नीचे काका।

मुमताज और शर्मिला टैगोर के साथ राजेश खन्ना की जोड़ी को काफी पसंद किया गया। मुमताज के साथ उन्होंने 8 सुपरहिट फिल्में दी। शर्मिला और मुमताज, जो कि राजेश की लोकप्रियता की गवाह रही हैं, का कहना है कि लड़कियों के बीच राजेश जैसी लोकप्रियता बाद में उन्होंने कभी नहीं देखी। आशा पारेख और वहीदा रहमान जैसी सीनियर एक्ट्रेस के साथ भी उन्होंने काम किया। गुरुदत्त, मीना कुमारी और गीता बाली को राजेश खन्ना अपना आदर्श मानते हैं। जीतेन्द्र और राजेश खन्ना स्कूल में साथ पढ़ चुके हैं। अपने बैनर तले राजेश खन्ना ने जय शिव शंकरनामक फिल्म शुरू की थी, जिसमें उन्होंने पत्नी डिम्पल को साइन किया। आधी बनने के बाद फिल्म रूक गई और आज तक रिलीज नहीं हुई। बहुत पहलेजय शिव शंकरफिल्म में काम मांगने के लिए राजेश खन्ना के ऑफिस में अक्षय कुमार गए थे। घंटों उन्हें बिठाए रखा और बाद में काका उनसे नहीं मिले। यही अक्षय एक दिन काका के दामाद बने।

एक बार का वाकया है जब वे बीमार पड़े। तब एक कॉलेज के ग्रुप ने उनकी तस्वीर पर बर्फ की थैली से सिंकाई की ताकि बुखार जल्दी उतर जाए। एक बार उनकी आंख में इंफेक्शन हो गया तो लड़कियों ने आईड्रॉप खरीदकर उनके पोस्टर पर ही लगाया। राजेश खन्ना की इन फिल्मी पत्रिकाओं में छपी तस्वीरें लड़कियों के कमरों, किताबों के पन्नों के बीच या तकिए के नीचे शोभा बढ़ातीं। वहीं लड़के राजेश खन्ना की तरह हेयर स्टाइल अपनाते या राजेश खन्ना की तरह से कपड़े पहनने की कोशिश करते। मतलब साफ है कि संचार के बहुत सीमित साधनों के बावजूद आज से करीब चार दशक पहले राजेश खन्ना देश को अपना दीवाना बना चुके थे। राजेश खन्ना को रोमांटिक हीरो के रूप में बेहद पसंद किया गया। उनकी आंख झपकाने और गर्दन टेढ़ी करने की अदा के लोग दीवाने हो गए। राजेश खन्ना द्वारा पहने गए गुरु कुर्त्ते खूब प्रसिद्ध हुए। इस बात से राजेश खन्ना पूरी तरह वाकिफ थे कि उनकी लोकप्रियता किस मुकाम तक पहुँच चुकी है... और वे स्वयं को आत्ममुग्ध होने से नहीं बचा पाए।

बताया जाता है कि राजेश खन्ना की दीवानगी ऐसी थी कि कुंवारी लड़कियों के बिस्तर पर तकिए के नीचे राजेश खन्ना का फोटो जरुरी जैसा हो गया था। फिल्मी पत्रिकाओं में फिल्मी सितारों को लेकर गॉसिप छपा करते थे। जैसे कि राजेश खन्ना का बेडरुम पूरा रेशम का बना हुआ है।‘ ‘राजेश खन्ना का बिस्तर, उसका नाइट गाउन, यहां तक की उसकी चप्पलें भी रेशम की हैं।’ ‘राजेश खन्ना ने एक बार अपने ऑकिटेक्ट को बुलाया और कहा कि मेरे बेडरूम से सीधे पूल में जाने के लिए एक स्लाइड बनाओ, जिससे में सुबह सोकर उठूं और फिर सीधा स्लाइड से फिसलकर स्विमिंग पूल में चला जाउं, लेकिन तब के मुंबई महानगरपालिका ने इसकी इजाजत नहीं दी’ ‘राजेश खन्ना ने अपनी प्रेमिका अंजू महेंद्रू को एक बंगला गिफ्ट किया है।ऐसे बहुत से गॉसिप राजेश खन्ना को लेकर छपते।

Friday, May 18, 2012

काश...........


काश...........
किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा
एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा

कोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगा
वो किसी और दुनिया का किनारा होगा

काम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ किसी दिल को
मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा

किसी के होने पर मेरी साँसे चलेगीं
कोई तो होगा जिसके बिना ना मेरा गुज़ारा होगा

देखो ये अचानक ऊजाला हो चला,
दिल कहता है कि शायद किसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होगा

और यहाँ देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया,
शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगा

कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा

अब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है,
किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगा

ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम
ग़र ये खेल ही दोबारा होगा

जानता हूँ अकेला हूँ फिलहाल
पर उम्मीद है कि दूसरी ओर ज़िन्दगी का कोई और ही किनारा होगा
              राज 

Thursday, May 10, 2012

विज्ञान की नज़र से क्या पुनर्जन्म होता है

पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है।
पुनरागमन को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण आज विद्यमान हैं। इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत है। विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं होता है, मात्र ऊर्जा का रुप परिवर्तन हो सकता है। अर्थात जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होती, वैसे ही चेतना का नाश नहीं हो सकता।चेतना को वैज्ञानिक शब्दावली में ऊर्जा की शुद्धतम अवस्था कह सकते हैं। चेतना सत्ता का मात्र एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है।
पुनर्जन्म का दूसरा प्रत्यक्ष प्रमाण पूर्वजन्म की स्मुति युक्त बालकों का जन्म लेना है। बालकों के पूर्वजन्म की स्मृति की परीक्षा आजकल दार्शनिक और परामनोवैज्ञानिक करते हैं। पूर्वभव के संस्कारों के बिना मोर्जाट चार वर्ष की अवस्थ्सा में संगीत नहीं कम्पोज कर सकता था। लार्ड मेकाले और विचारक मील चलना सीखने से पूर्व लिखना सीख गए थे। वैज्ञानिक जान गाॅस तब तीन वर्ष का था तभी अपने पिताजी की गणितीय त्रुटियों को ठीक करता था। इससे प्रकट है कि पूर्वभव में ऐसे बालकों को अपने क्षेत्र में विशेष महारत हासिल थी। तभी वर्तमान जीवन में संस्कार मौजूद रहे।
प्रथमतः शिशु जन्म लेते ही रोता है। स्तनपान करने पर चुप हो जाता है। कष्ट में रोना ओर अनुकूल स्थिति में प्रसन्नता प्रकट करता है। शिशु बतख स्वतः तैरना सीख जाती है। इस तरह की घटनाएं हमें विवश करती हैं यह सोचने के लिए कि जीव पूर्वजन्म के संस्कार लेकर आता है। वरन नन्हें शिशुओं को कौन सिखाता है?
डाॅ. स्टीवेन्सन ने अपने अनुसंधान के दौरान कुछ ऐसे मामले भी देखे हैं जिसमें व्यक्ति के शरीर पर उसके पूर्वजन्म के चिन्ह मौजूद हैं। यद्यपि आत्मा का रुपान्तरण तो समझ में आता है लेकिन दैहिक चिन्हों का पुनःप्रकटन आज भी एक पहेली है।
डाॅ. हेमेन्द्र नाथ बनर्जी का कथन है कि कभी-कभी वर्तमान की बीमारी का कारण पिछले जन्म में भी हो सकता है। श्रीमती रोजन वर्ग की चिकित्सा इसी तरह हुई। आग को देखते ही थर-थर कांप जाने वाली उक्त महिला का जब कोई भी डाॅक्टर इलाज नहीं कर सका। तब थककर वे मनोचिकित्सक के पास गई। वहां जब उन्हें सम्मोहित कर पूर्वभव की याद कराई  कई, तो रोजन वर्ग ने बताया कि वे पिछले जन्म में जल कर मर गई थीं। अतः उन्हें उसका अनुभव करा कर समझा दिया गया, तो वे बिल्कुल स्वस्थ हो गई। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों ने विल्सन कलाउड चेम्बर परीक्षण में चूहे की आत्मा की तस्वीर तक खींची है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि मृत्यु पर चेतना का शरीर से निर्गमन हो जाता है?
सम्पूर्ण विश्व के सभी धर्मो, वर्गों, जातियों एवं समाजों में पुनर्जन्म के सिद्धांतों किसी न किसी रुप में मान्यता प्राप्त है।
अंततः इस कम्प्युटर युग में भी यह स्पष्ट है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत विज्ञान सम्मत है। आधुनिक तकनीकी शब्दावली में पुनर्जन्म के सिद्धांत को इस तरह समझ सकते हैं। आत्मा का अदृश्य कम्प्युटर है और शरीर एक रोबोट है। हम कर्मों के माध्यम से कम्प्युटर में जैसा प्रोग्राम फीड करते हैं वैसा ही फल पाते हैं। कम्प्युटर पुराना रोबोट खराब को जाने पर अपने कर्मों के हिसाब से नया रोबोट बना लेता है।
पुनर्जन्म के विपक्ष में भी अनेक तर्क एवं प्रक्ष खड़े हैं। यह पहेली शब्दों द्वारा नहीं सुलझाई जा सकती है। जीवन के प्रति समग्र सजगता एवं अवधान ही इसका उत्तर दे सकते हैं। संस्कारों की नदी में बढ़ने वाला मन इसे नहीं समझ सकता है।
पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है।
पुनरागमन को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण आज विद्यमान हैं। इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत है। विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं होता है, मात्र ऊर्जा का रुप परिवर्तन हो सकता है। अर्थात जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होती, वैसे ही चेतना का नाश नहीं हो सकता।चेतना को वैज्ञानिक शब्दावली में ऊर्जा की शुद्धतम अवस्था कह सकते हैं। चेतना सत्ता का मात्र एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है।
पुनर्जन्म का दूसरा प्रत्यक्ष प्रमाण पूर्वजन्म की स्मुति युक्त बालकों का जन्म लेना है। बालकों के पूर्वजन्म की स्मृति की परीक्षा आजकल दार्शनिक और परामनोवैज्ञानिक करते हैं। पूर्वभव के संस्कारों के बिना मोर्जाट चार वर्ष की अवस्थ्सा में संगीत नहीं कम्पोज कर सकता था। लार्ड मेकाले और विचारक मील चलना सीखने से पूर्व लिखना सीख गए थे। वैज्ञानिक जान गाॅस तब तीन वर्ष का था तभी अपने पिताजी की गणितीय त्रुटियों को ठीक करता था। इससे प्रकट है कि पूर्वभव में ऐसे बालकों को अपने क्षेत्र में विशेष महारत हासिल थी। तभी वर्तमान जीवन में संस्कार मौजूद रहे।
प्रथमतः शिशु जन्म लेते ही रोता है। स्तनपान करने पर चुप हो जाता है। कष्ट में रोना ओर अनुकूल स्थिति में प्रसन्नता प्रकट करता है। शिशु बतख स्वतः तैरना सीख जाती है। इस तरह की घटनाएं हमें विवश करती हैं यह सोचने के लिए कि जीव पूर्वजन्म के संस्कार लेकर आता है। वरन नन्हें शिशुओं को कौन सिखाता है?
डाॅ. स्टीवेन्सन ने अपने अनुसंधान के दौरान कुछ ऐसे मामले भी देखे हैं जिसमें व्यक्ति के शरीर पर उसके पूर्वजन्म के चिन्ह मौजूद हैं। यद्यपि आत्मा का रुपान्तरण तो समझ में आता है लेकिन दैहिक चिन्हों का पुनःप्रकटन आज भी एक पहेली है।
डाॅ. हेमेन्द्र नाथ बनर्जी का कथन है कि कभी-कभी वर्तमान की बीमारी का कारण पिछले जन्म में भी हो सकता है। श्रीमती रोजन वर्ग की चिकित्सा इसी तरह हुई। आग को देखते ही थर-थर कांप जाने वाली उक्त महिला का जब कोई भी डाॅक्टर इलाज नहीं कर सका। तब थककर वे मनोचिकित्सक के पास गई। वहां जब उन्हें सम्मोहित कर पूर्वभव की याद कराई  कई, तो रोजन वर्ग ने बताया कि वे पिछले जन्म में जल कर मर गई थीं। अतः उन्हें उसका अनुभव करा कर समझा दिया गया, तो वे बिल्कुल स्वस्थ हो गई। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों ने विल्सन कलाउड चेम्बर परीक्षण में चूहे की आत्मा की तस्वीर तक खींची है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि मृत्यु पर चेतना का शरीर से निर्गमन हो जाता है?
सम्पूर्ण विश्व के सभी धर्मो, वर्गों, जातियों एवं समाजों में पुनर्जन्म के सिद्धांतों किसी न किसी रुप में मान्यता प्राप्त है।
अंततः इस कम्प्युटर युग में भी यह स्पष्ट है कि पुनर्जन्म का सिद्धांत विज्ञान सम्मत है। आधुनिक तकनीकी शब्दावली में पुनर्जन्म के सिद्धांत को इस तरह समझ सकते हैं। आत्मा का अदृश्य कम्प्युटर है और शरीर एक रोबोट है। हम कर्मों के माध्यम से कम्प्युटर में जैसा प्रोग्राम फीड करते हैं वैसा ही फल पाते हैं। कम्प्युटर पुराना रोबोट खराब को जाने पर अपने कर्मों के हिसाब से नया रोबोट बना लेता है।
पुनर्जन्म के विपक्ष में भी अनेक तर्क एवं प्रक्ष खड़े हैं। यह पहेली शब्दों द्वारा नहीं सुलझाई जा सकती है। जीवन के प्रति समग्र सजगता एवं अवधान ही इसका उत्तर दे सकते हैं। संस्कारों की नदी में बढ़ने वाला मन इसे नहीं समझ सकता है।

Thursday, April 5, 2012

अनजाने में कही हुई बात, सही भी हो जाती है...

बहुत दिन हुए किसी से अपनी तारीफ नहीं सुनी....

चलो आज मर ही जाते हैं....

कोई तो कहेगा, तो क्या हुआ वो मर गया...

पर आदमी बहुत अच्छा था....

  

Thursday, February 3, 2011

LIFE.................................


Life is happiness


Iranian_Girls Group

Life is joy
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Life is love

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Life is unity

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Life is care

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Life is faith

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Life is freedom


Life is peace

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Life is creation

Life is fantasy


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Life is art
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Life is a dream

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Life is a fairy tale

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Life is a mystery

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Life is knowledge

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Life is delight

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Life is rest

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Life is splendour

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Life is nature

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Life is elegance

Life is Feelings
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Isn't it

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 So Enjoy it at its fullest! !! 

  "Life is full of tears which cums out @ evry occasion of happiness n sadness"!!